Wednesday, 31 August 2016

खामोशी

खामोशी अब खामोश नहीं वह भी कुछ कहती है,
खामोश चेहरों से हजार प्रश्न पूछती है.
खामोशी संग उदासी, मायुसी भी है छाई,
संग अपने अश्कों का समुंदर भी है लाई,
अश्कों में डूबी जाए खामोशी की गहराई.
खामोशी शांति नहीं है यह मन की अशांति,
किसी से कुछ न कह पाने की खामोशी ,
बिन कुछ कहे सबकुछ सह जाने की खामोशी,
बयाँ कर जाती है चेहरों को चुपके से खामोशी.
गमों के तुफान आने से पहले की खामोशी,
या फिर बिखरे जीवन पर सिमटने की खामोशी.
कोई भी पहचान न पाए है यह खामोशी क्यों?
कोई भी न जान पाए है यह मायुसी क्यों?
किसी की खामोशी एक बार तोडकर देखो,
चेहरों को पढकर उनके आसुओं को पोछ्कर तो बुझो,
गुमसुम खामोशी में एकबार महफिलें सजाकर तो देखो.
किसी को खुशियाँ देने का आनंद,
किसी को जीभर हँसाने का कदम,
तुम्हारे जीवन की खामोशी भी मिट जाएगी,
दुसरों की खुशियों संग तुम्हारी खुशी भी जगमगाएगी.
फिर न रहेगा कोई खामोश, हताश और उदास,
उनकी खुशियोंमें रंग भरकर तुम भी बन जाओगे खास…

No comments:

Post a Comment