सूरत ना देखी मैंने उसकी,
मूरत फिर भी उसकी बनने लगी है,
दिन को चैन नहीं आता,
और रातों की नींद उड़ने लगी है,
लगता है उससे मोहब्बत होने लगी है...
उसकी यादों में, आँखों से नीर बहते है,
अब तो आँखों को आँसू से मोहब्बत होने लगी है,
कलम लिखना चाहती है, केवल तुम्हारे बारे में,
और बातें मेरी कविताओं में ढलने लगी है,
लगता है उससे मोहब्बत होने लगी है...
उसकी यादों में, रातें गुजार देती हूँ,
अपनी ही बातों में, खुद को सँवार देती हूँ,
सुनसान रातों में, मेरी बातें गहराई में उतरने लगी हैं,
अब तो मेरे दिल की तन्हाई मोहब्बत में बदलने लगी है,
लगता है उससे मोहब्बत होने लगी है...
सुबह सूरज की रोशनी भी अधूरी सी लगती है,
बाज़ार की भरी सड़के भी सुनी सी लगती है,
उसके आने की ये आँखें राह देखने लगी हैं,
अब तो माह भी सालों की तरह दिखने लगे हैं,
लगता है उससे मोहब्बत होने लगी है...
उसके चेहरे की चमक सादी लगती है,
चाँद पूरा निकलता है पर रोशनी आधी लगती है,
बारिश की बूँदें भी अब मुझे भिगोने लगी हैं,
अब तो दिल की धड़कन भी यादों को पिरोने लगी है,
लगता है उससे मोहब्बत होने लगी है...
अभी भी घर की चौखट पर, उसकी राह तके बैठी हूँ,
सुबह से शाम और शाम से सुबह, उसकी राह में गुज़ार देती हूँ,
कब आओगे ये मेरी तन्हाई कहने लगी है,
तन्हाई की बातें दिल को झूठी लगने लगी हैं,
लगता है उससे मोहब्बत होने लगी है...
Really
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