Friday 17 June 2016

जब बेटी

पलकों को बंद करके
नन्ही परी सो जाती है
जाने दूर सपनो में
कही खो जाती है
ठक ठक भरती कदम
होल होल उठाती है
अपने आप में खोई
गुड़ियों से बतलाती है
मुड़कर देखती है
बड़ी माशूमियत से कभी
छोटी सी तितली
टूटे दांत दिखाती है
बड़ी प्यारी हैं बातें उसकी
तोतली जबान भाती है
किसी वीणा सी बज़ती है
जब वो खिलखिलाती है
गूस्सा उसका तीखा है
मिजाज थोड़ा फीका है
ओढ़ती है माँ की चुनरी
और माथे पर टीका है
जिद उसकी हठीली है
लड़की छैलछबीली है
नाजुक सा पंख है वो
गुड़ियाँ रंग रंगीली है
छुपना छुपाना उसका
मन मन मुस्काना उसका
अचानक घबराना उसका
आखें फिर दिखाना उसका
वो एक दीयाबाती है जिससे
जिन्दंगी जगमगाती है
मेरी रूह चैन पाती है
जब बेटी गले लग जाती है

No comments:

Post a Comment