Wednesday 22 June 2016

एक दिन तुमसे जरुर मिलूँगी


तुम्हारी ओर क्यों खिंची चली आ रही थी, अब तक नहीं जानती थी. पर जब मासूम अंदाज़ में कही तुम्हारी बातें खुद को बार-बार दोहरा रही थीं तो अचानक अहसास हुआ कि दुनिया में सबसे ज्यादा आकर्षण अगर किसी चीज में है, तो वह मासूमियत में ही तो है. वह मासूम पिल्ला, नन्ही चिड़िया, शांत कबूतर, भोली बछिया, फुदकता मेमना, कोमल शिशु, उसकी नन्हीं सी चप्पल और ऐसी ही मासूमियत को समेटे दुनियाभर की चीजें ही तो सदा से मेरे आकर्षण का केंद्र रही हैं. जिन्हें देखते हुए एक उम्र गुजारी जा सकती है. जिन्हें देखते हुए सारे गम भुलाये जा सकते हैं. जिन्हें देखते हुए दुनिया बहुत-बहुत खूबसूरत लगती है. उस मासूमियत का अंश अगर कहीं पाऊँगी तो खुद को कैसे रोक पाऊँगी. और अब तो रोकना चाहती भी नहीं. क्योंकि मासूमियत से प्रेम ही तो सच्चे अर्थों में ईश्वर से प्रेम है.

तुम तो शायद जानते भी नहीं होंगे कि तुम्हारे बारे में सोच-सोचकर ही चेहरे पर मुस्कुराहट खिल आती है. तुम्हारे खयालों में पूरा दिन और पूरी रात मुस्कुराया जा सकता है. यह दिल तुम पर आँख मूंदकर भरोसा करना चाहता है. जी करता है तुम्हारा हाथ पकड़ लूँ और तुम्हें अपलक देखते हुए, जहाँ तुम चाहो, बिना कुछ सोचे चलती रहूँ. हाथ गालों पर टिका तुम्हारे सामने बैठूं और चुपचाप घंटों तुम्हें सुनती रहूँ. तुम्हें क्या पता... तुम्हारी तो हर बात मानने का दिल करता है. 

जब भी तुम मुस्कुराते हो न तो कुछ ऐसा जादू होता है कि मेरा रोम-रोम मुस्कुराने लगता है . मैं अक्सर तुम्हारी मुस्कुराहटों को काउंट करने लगती हूँ, इस दुआ के साथ कि एक दिन ऐसा आये जब तुम्हारी मुस्कुराहटों को गिन पाना संभव ही न हो. वो अनन्त खुशियों वाला दिन कितना अनुपम होगा न? उस दिन सृष्टि का कण-कण, पत्ता-पत्ता, जर्रा-जर्रा मुझे तुम्हारी मुस्कुराहट प्रेषित करेगा. और मैं? मैं उस दिन बहुत रोऊँगी. जानते हो क्यों? क्योंकि उस दिन मेरे आँसू भी तो मुस्कुराएंगे न.

तुम्हें पता है? जब तुम नहीं होते, तब भी मैं तुमसे बातें करती हूँ, उस सर्वव्यापी भाषा में जिसे प्रेम कहते हैं. इतना निर्मल और निष्कपट मैंने खुद को कभी महसूस नहीं किया. इतने प्यार और विश्वास ने मुझे कभी नहीं छुआ. तुम्हें जान लिया तो लगता है, अब किसी को जानने की ख्वाहिश नहीं. इतना सुकून, इतनी शांति और इतनी ख़ुशी कि तुम तक आकर ज़िन्दगी की तलाश खत्म होती सी लगती है. 

सच कहूँ तो तुम्हें चाहना ज़िन्दगी को चाहना है. जीने की इच्छा जाग उठती है सिर्फ तुम्हें चाहने के लिए. दिल करता है मांग लूँ ईश्वर से एक और जीवन सिर्फ और सिर्फ तुम्हें प्यार करने के लिए. वह जीवन जिसमें तुम्हारे साथ और सामीप्य के लिए किन्तु, परन्तु, अगर, मगर जैसा कोई शब्द मुझे रोक ना सके. वह जीवन जिसमें भूत की परछाइयों और भविष्य के झरोखों से झाँकते भय का कोई अस्तित्व ना हो. वह जीवन जिसमें सिर्फ तुम और सिर्फ मैं के बीच कुछ हो तो वह हो सिर्फ प्रेम. वह प्रेम जो सिर्फ मैं और सिर्फ तुम के अस्तित्व को सदा के लिए मिटा दे और रह जाएँ सिर्फ हम. 

फिर चाहे मैं भोर की पहली किरण बनकर तुम्हारी अलसाई आँखों को सहला उनमें चमक जाऊँ, या फिर चाय की प्याली से चुस्कियाँ लेते तुम्हारे होठों के बीच की रिक्तता से हवा बन तुममें घुल जाऊँ. भोर के भ्रमण में तुम्हारा स्वागत शीतल झोंका बनकर करूँ, या फिर सूरज की गर्मी से सूखे तुम्हारे कंठ में पानी का घूँट बनकर उतरूँ. होली के रंगों में से कोई रंग बनकर तुम्हारे गालों पर खिल जाऊँ, या फिर बारिश की एक बूँद बनकर तुम पर बरसूँ और हौले से तुम्हारे होठों पर लुढ़क आऊँ. रात तुम्हारे सिरहाने कोई मीठी सी धुन बनकर तुम्हें सुलाऊँ या फिर एक हँसी ख़्वाब बनकर नींदों में भी तुम्हें गुदगुदाऊँ. कोयल की कूंक बनकर मिश्री सी तुम्हारे कानों में घुलूँ या फिर भीगी मिट्टी की सौंधी खुशबूं बन तुम्हारी साँसों से जा मिलूं. 

नहीं जानती कैसे, पर एक दिन तुमसे जरुर मिलूँगी. बनूँगी एक लम्हा और बस तुम्हें छू लूंगी.

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