Wednesday 31 August 2016

मैं पराई क्योँ….

माँ मैं तो हुँ एक परदेसी चिडिया,
ना आऊँगी आपके घर अंगना.
ढुंढा बापु ने मेरा नया बसेरा,
बिन मेरे होगा अब आपका हर सवेरा.
उस डाल को न काटना थी जहाँ आपकी बिटिया,
जाकर ढुंढोगे घर में फिर वही गुडिया.
दिलाएगी हरपल याद मेरी चीजें,
रुलाएंगी फिर मेरी नादानियोँभरी बातें.
सूना हो जाएगा अपका वो घर आंगन,
जहां छमछम पायल मेरी और बजते थे कंगन.
माँ बापु बुला फिर से मुझे पास अपने,
लौटा दो फिर से मेरे वो प्यारे पल,
कर दो अपनी लाडली बिटिया पर यह एहसान.
माँ की गोदी में जब सोती थी रखकर सिर,
सहलाती बालो को मेरे देती ममता अपार,
क्योँ छिना मुझसे मेरा प्यारा संसार.
क्योँ बन गयी गयी थी मैं आप पर बोझ भारी,
क्योँ मेरी खातिर पड गया कम ममता का आंचल ?
भुला दिया कैसे मुझे?थी मैं तो आपकी धडकन.
जानती हुं कि मेरी कमी आपको खलेगी,
पर आपकी कमी तो मुझे सदा ही रहेगी.
गंगा नहा चुके आप दोनोँ करके हमें दान,
क्या हम नहीं उन बेटोँ की तरह् इंसान.
हमें भी तो बनाया है आपने काबिल इतना,
हम भी तो बनते एक दिन सहारा आपका.
क्योँ इस दुनिया की रीत है ऐसी,
दुनिया की हर समर्पण नारी ही करती,
आसओँ से सदा वो अपनी झोली भरती,
क्योँ बेटी, बेटे का दर्जा पा नहीं सकती?

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