Wednesday 25 January 2017

काँटे क़िस्मत में हो

 काँटे क़िस्मत में हो
तो बहारें आये कैसे
जो नहीं बस में हो
उसकी चाहत घटाये कैसे

सूरज जो चढ़ता है
करते है उसको सब सलाम
ढूबते सूरज को भला
ख़िदमत हम दिलायें कैसे

वो तो नादान है
समंद्र को समझते है तालाब
कितनी गहराई है
साहिल से बताये कैसे

दिल की बातें है
दिल वाले समझते है जनाब
जिसका दिल पत्थर का हो
उसको पिघलाये कैसे

काँटे क़िस्मत में हो
तो बहारें आये कैसे
जो नहीं बस में हो
उसकी चाहत घटाये कैसे....



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