Monday 6 November 2017

सपने

सपने होते हैं परछांई से,
जितने कदम चलो उतने बढ़ते जाते हैं
कभी खुशहली,
तो कभी जंग वो बन जाते हैं
छोटे से मन में,
वो विशाल घर बनाते हैं
जिन्दगी की हकीकत में,
वो युद्ध छेड़ जाते हैं
सपने हैं परछांई से,
जितने कदम चलो उतने बढ़ते जाते हैं
नर्मी सा एहसास,
दिल में भर देते हैं
कभी हकीकत बन के,
सामने आ जाते हैं
कभी किसी से नही करते हैं,
वो भेद-भाव
चाहे राजा हो या भिखा की आँखें,
सबकी आँखों में आते हैं वो
सपने हैं परछांई से,
जितने कदम चलो उतने बढ़ते जाते हैं
ऊँचाई इतनी कि,
पल में चाँद और सूरज को छू लें
गहराई इतनी कि,
समुद्र की सतह में पल न लगे
गरीब को पल में,
अमीर वो बनाएँ
महबूबा को पल में,
प्रियतम से मिलाए
सपने हैं परछांई से,
जितने कदम चलो उतने बढते जाते हैं.......

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